
ब्राइट फ्यूचर इंटरनेशनल स्कूल व ग्लोबल पैरामेडिकल इंस्टीट्यूट के चैयरमेन डॉ मौ उस्मान द्वारा गांव के सूनेपन को दर्शाती एक एक कविता लिखी गई है। समय-समय पर डॉ मौ उस्मान द्वारा समाज को शिक्षा व आपसी सौहार्द को दर्शाती कविताएं पहले भी लिखी जाती रही है। डॉ मौ उस्मान को शिक्षा के क्षेत्र में बेहतर कार्य करने पर कई राष्ट्रीय पुरस्कारो से सम्मानित भी किया जा चुका है। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक डॉ मौ उस्मान एक शिक्षक के साथ साथ मोटिवेशन स्पीकर व समाजसेवी भी है। जिनके द्वारा समय समय पर समाज के लोगों के शिक्षा व स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता कार्यक्रम भी आयोजित किए जाते रहे है। इस कविता में उन्होंने एक गांव को अपने शब्दों में उतारने की कोशिश की है।

मेरा गांव अब उदास रहता है
लड़के जितने भी थे मेरे गांव में।
जो बैठते थे दोपहर को आम की छांव में।
बड़ी रौनक हुआ करती थी जिनसे घर में
वो सब के सब चले गए शहर में।
ऐसा नही कि रहने को मकान नही था।
बस यहां रोटी का इंतजाम नहीं था।
हास परिहास का आम तौर पर उपवास रहता है।
मेरा गांव अब उदास रहता है।।
बाबू जी ठंड में सिकुड़े और पसीने मे नहाए थे।
तब जाकर तीन कमरे किसी तरह बनवाए थे।
अब तीनों कमरे खाली हैं मैदान बेजान है।
छतें अकेली हैं गलियां वीरान हैं।।
मां का शरीर भी अब घुटनों पर भारी है।
पिता को हार्ट और डाईविटीज की बीमारी है।
अपने ही घर में मां बाप का वनवास रहता है।
मेरा गांव अब उदास रहता है।।
छत से बतियाते पंखे, दीवारें और जाले हैं।
कुछ मकानों पर तो कई वर्षों से तालें हैं।।
बेटियों को ब्याह दिया गया ससुराल चली गई।
दीवाली की छुरछुरी होली का गुलाल चली गई।
मोहल्ले मे जाओ जरा झांको कपाट पर।
बैठे मिलेंगे अकेले बाबू जी, किसी कुर्सी किसी खाट पर।।
सावन के झूले उतर गए भादों भी निराश रहता है।
मेरा गांव अब उदास रहता है।।
कबड्डी वालीबाल अंताक्षरी, सब वक्त की तह में दब गए।
हमारे गांव के लड़के कमाने शहर जब गए।।
अब ईद व दिवाली की वो बात नही रही।
गर्मियों मे छतों पर हलचल की रात नही रही।।
दालान में बैठे बुजुर्ग भी स्वर्ग सिधार गए।
जो जीत गए थे मुश्किलों से वो बीमारियों से हार गए।।
ये अंधी दौड़ तरक्कियों की गांव सूना कर गई।
खालीपन का घाव अब तो दोगुना कर गई।
जाने वाले चले गए, कहां कोई अनायास रहता है।
मेरा गांव अब उदास रहता है।।
कलम ✍️ से डॉ मौ उस्मान